ब्लेक होल क्या है
आप सोचते होंगे यह ‘ब्लैक होल’ अर्थात ‘कला छेद है क्या’ ?
वास्तव में जब किसी तारे से
प्रकाश, ताप आदि के रूप में निकलने वाली उर्जा उस तारे पर बहार की और दबाव उत्पन
करती है और यह दबाव उस तारे की संहित द्वारा केन्द्र की और लगने वाले गुरुत्वाकर्षण
बल को संतुलित रखता है परन्तु जिस समय उस तारे के ताप नाभिकीय उर्जा का भण्डार
पर्याप्त हो जाता है, तब उस तारे की गुरुत्वाकर्षण मृत्यू हो जाती है |
अब अगर उस तारे का भार सूर्य के भार से 1.06 गुना अथवा इससे
ज्यादा हो तो वह तारा स्वयं के केन्द्र की और लगने वाले गुरुत्वाकर्षण बल के कारण
लगातार सिकुड़ने लगेगा और इसका आकार लगातार छोटा होता चला जायेगा तथा आकार के
साथ-साथ इसकी त्रिज्या भी छोटी होती चली जायेगी परन्तु इस तारे के अन्दर की और से
लगने वाले गुरुत्वाकर्षण बल के कारण छोटी होने की इस प्रक्रिया में इसकी त्रिज्या
जब एक विशेष लंबाई की रह जायेगी | तब इसके अन्दर की और लगने वाला गुरुत्वाकर्षण बल
अनन्त होगा जो तारे के सारे पदार्थ को चारो और से दबा कर केन्द्र में ले जायेगा |
इस प्रक्रिया में केन्द्र
का आयतन तो शून्य हो जाता है परन्तु इसका घनत्व अनन्त हो जाता है | इस प्रकार उस
तारे की गुरुत्वाकर्षण मृत्यू हो जाती है | इसी अनन्त शक्ति के इसी गोले को ब्लैक
होल कहते हैं |
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